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Manju Rani

Romance Tragedy Others

4  

Manju Rani

Romance Tragedy Others

उजाले की चाह

उजाले की चाह

1 min
322


जाने क्यों

सब छूट-सा रहा ,

क्यों ये

जीवन रूठ-सा रहा ,

अंदर सब जम-सा गया ।

लाख कोशिशों पर भी

बहता ही नहीं ।

गम कुछ ज्यादा ही

छलनी कर गया ।

जख्म पे जख्म दे गया ।

मलहम कोई असर

दिखाता ही नहीं ।

बस, अब उसका इंतजार

जो इस दिल को धड़का रहा ।

मेरी साँसे ढूँढ रहा

और मैं बर्फ-सी जमती जा रही ।

पर फिर भी मैं जिंदा

चलती-फिरती,

खाती-सोती,

अपने को पालती ।

न शिकवा,

न शिकायत ,

न कोई नाराज़गी ।

जिंदगी को दर्द की

परतों के नीचे से

निकाल रही

पर निकलती नहीं ,

कभी आँसुओं के सैलाब में डूब जाती,

कभी यादों के तूफानों मेें खो जाती,

पर निगोड़ी धड़कन

धड़कने के बहाने खोजती ही रहती,

दरारों से दीए की रोशनी निहारती रहती ,

उजाले की चाह में

जीती ही रहती ,

जीती ही रहती ।


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