मृत्यु और निर्माण
मृत्यु और निर्माण
खेल यह युगों का है
समझले तू इंसान
अनजान ना बन इस खेल से
पल में मृत्यु पल में निर्माण
हरे पात डाली पर उगते
घर घर हरियाली लाते जो
फिर बनकर राख बिखर वो जाते
घर वाले ही आग लगाते जो
सुख में मुंह मीठा जो करते
अक्सर खंजर का तोहफा भी लाते
खुद्दारी की चादर ओढ़े बन जा तू बलवान
अनजान ना बन इस खेल से
पल में मृत्यु पल में निर्माण
चन्द्रमा भी क्या आकार यह मोडे
पूर्णिमा से अमावस बने
तारो से नाता तोड़े
पश्चिम का सूरज जो पूरब में उगे
शरद का झोंका भी ग्रीष्म में सुहावना लगे
नए नए जगह इंसान तेरे
नवीन हैं मोल बने
कोई गुणों कि अवहेलना करे
किसीको अवगुण भी सजे
खुदपर विश्वास रख ए बंदे
अपनी शक्ति ना पहचाने ये तेरा अज्ञान
खेल है ये काल का खेल है ये कर्मो का
अपने कर्मो से ही बने तेरे मृत्यु निर्माण समान।।