जीवन की इस यात्रा में
जीवन की इस यात्रा में
जीवन की इस यात्रा में, आया ज़िंदगी को समझना नहीं,
एक रात का मुसाफिर हूँ, मंजिल का कोई ठिकाना नहीं,
रेत की तरह फिसल गया सब कुछ यहाँ, मेरे इन हाथों से,
ठहर जाऊंँ जो किसी मोड़ पे, बचा अब कोई बहाना नहीं,
चलता ही जा रहा हूंँ बस जहांँ ये सफ़र लेकर चला जाए,
बदकिस्मती की लकीरों से अब किसी को है रुलाना नहीं,
रुका हूँ अब तक जहांँ भी, खुशियों ने मुझसे नाता तोड़ा,
वज़ह हो जीने की ख़्वाबों का कोई ऐसा आशियाना नहीं,
इतनी ठोकरें दी ज़िन्दगी ने कि खुद पे भी यकीन न रहा,
लड़खड़ाते हुए को संभाल ले, ऐसा तो यह ज़माना नहीं,
उम्मीद भी किससे करूंँ, जब खुद से ही उम्मीद ना रही,
बस सांँसे गिन रहा हूँ, ज़िन्दगी से रहा कोई याराना नहीं,
कहते हुए सुना है लोगों से, ये ज़िंदगी बड़ी है ख़ूबसूरत,
होंगी मौजूद खुशियांँ,पर मेरे लिए यहाँ कोई तराना नहीं,
भीड़ तो बहुत है यहांँ पर सब लगते बस अजनबी चेहरे,
दुनिया जिस पे मरहम लगाए ऐसा कोई अफसाना नहीं,
हुआ करता था कभी वसंत जीवन, सावन भी आए थे,
पर दर्द के सिवाय, बचा अब कोई मौसम सुहाना नहीं,
यही मेरी जीवन यात्रा, यही मेरे इस जीवन की कहानी,
शायद इस जन्म में तो खुशियों का लिखा है आना नहीं,
मिला है यह जीवन तो, ये यात्रा भी पूरी करनी ही होगी,
जीवन तो खूबसूरत शायद मुझको ही आया जीना नहीं।