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Meera Kannaujiya

Classics Inspirational Others

4.5  

Meera Kannaujiya

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हाय रे शाखा की पत्ती!

हाय रे शाखा की पत्ती!

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हाय रे शाखा की पत्ती,कैसे हँसती

बलखाती विहंग सी फड़फड़ाती अपने पिया संग।

मानो सखियों संग मिल के रास रचाती रिझाती अपने सांवरे का मन।।


गया ज़माना तेरा तू चली जा अब छोड़ के,

कुम्हलाया सा नीरस तन तेरा अब नहीं भाता मुझे।

डाल हूँ हर हाल में मैं एक सा रहूँगा,

अलविदा कह मुझे अब नई कोपलों संग झूमुंगा।।


अनमना हुआ उसका मन,

सुन के पिया की बात,

समीर का झोंका गगन में,

ले उड़ा अपने साथ।

पीला हुआ उसका तन,

छोड़ के पिया का संग।

ना घर रहा,ना आशियाना,

कोई डगर, कहीं ना ठिकाना,

ना प्राण है,ना जान है,

उड़ा ले जाये कहाँ हवाएँ,

उसको क्या पहचान है?


बिना पंख उड़ती परी,आज कीच में आ मिली।

मलिन हुआ मखमली तन उसका,

जैसे पंक में पंकज फंसा।

देख के यह हाल किसलय का,

तभी बरसी दयालु बरखा।

सोचा,कीर है जो कीच में

जा फंसा है बीच में,

मेह ने स्नेह से धोया अश्रुओं से उसे।

चमक उठा उसका बदन,

मानों पापों से धोया ईश ने।


फिर उठी अम्बर से आँधी,

जा पहुँची अग्यार विटप पर।

खुश हुई ज़रा जैसे नया मकान मिला,

टूटे हुए मन को मानों छोटा सा संसार मिला।


तभी अनसुनी सी इक,

उसने सुनी पुकार नई,

चली जा तू अरी पत्र,

ये तेरा घर-बार नहीं। 


छोड़ी हुई जागीर को भला हम क्यूं अपनायें,

ना तेरा कोई,तू रही ना किसी की,

फिर इस जूठन को कौन खाये।


हाय!अचानक भस्म कर दिया,

भास्कर ने भीषण किरणों से उसे।

नहीं रह सकती जहां में,

सबके साथी हैं मीत हैं,

है नहीं एकल कोई,

सबका जोड़ा है प्रीत है।

ले भस्म करता हूँ,जा तुझे मुक्तिदान दिया।

नहीं देख सका ये रंज,

जा तुझे आज विश्राम दिया।

टूटी हूँ जबसे डाल से मैं,

कहीं ना आराम मिला।

उड़ाया,किसी ने ताना कसा।

भिगोया,किसी ने जला डाला।।

रोती रही बिलखती,

पिया वियोग में तड़पती रही।

ना प्यार मिला,सम्मान मिला,

किसी पर ना अधिकार मेरा।

अंत में अस्मिता मेरी ख़ाक हुई...,

विश्राम तभी मिला... जब मैं जल कर राख हुई।


*शब्दार्थ*- विहंग-पक्षी,अनमना-उदासीन

कीच-कीचड़,पंक-कीचड़(किसी प्रकार का कलंक)

किसलय-नवपल्लव,कीर-तोता

अस्मिता-हस्ती,अस्तित्व।


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