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Bhavna Thaker

Tragedy

4  

Bhavna Thaker

Tragedy

हासिल का मोल नहीं

हासिल का मोल नहीं

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कितनी कीमती गौहर सी थी तुम्हारी नज़रों में मैं जब तक पाया न था तुमने मुझे,

तुम भिक्षुक से थे मैं दाता सी लगती थी तुम्हें, कितने मनुहार पर पाया मुझे..


और पाते ही मुझे,,,, 

मचल उठे थे जज़्बात, खिल उठे थे अहसास, बरस ने लगी थी चाहत, पिघलने लगे थे अरमान....

 

खेला, चाहा, पीया, इश्क की बारिश में नहलाया,,,

तुष्टिगुण की परिभाषा ने मोह और ममत को आहिस्ता-आहिस्ता जकड़ लिया.. 

बेरुख़ी का सैलाब आया,

आकर्षण को बहा कर ले गया

एक पुल टूट गया, प्यार मर गया तुमने मुझे खो दिया....

 

तुम खुश थे मन जो भर गया था 

भूल चुके हो मुझे 

शायद किसी मृगजल से मन बंधा है,,,

अब ये गौहर मामूली बन चुका है

तद्दन रसहीन...

 

पर वापस मेरी यादों का बवंडर उठा है तुम्हारे भीतर 

मेरे साथ बिताए लम्हें कहाँ इतने आम थे

तुम्हारी तिश्नगी ढूँढ रही है मेरे जिस्म की खुशबू,,,

फिर से मुझे पाने की ललक ने दीवाना बना दिया...


अब मैं नहीं हूँ कहीं नहीं 

पर खोने के बाद कीमत मेरी करोडों की हो चली है,,,, 

मैं नगीना हूँ अब तुम्हारी नज़रों में क्यूँकि लभ्य नहीं हूँ,,,,

या तो मिलने के पहले हर चीज़ अनमोल लगती है या तो खोने के बाद

हासिल का कहाँ कोई मोल....

कथीर ही समझा जब थी अनमोल।


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