हाल ए दिल
हाल ए दिल
कोई सुने या ना सुने पर मैं अब खुल के बोलना चाहती हूं
अपने अन्दर दबे कुछ जज्बातों को बयां करना चाहती हूं
वो वक्त जब हम भी कभी जवां थे,
कुछ लोग हम पे भी यूं फिदा थे
बहुत कुछ महसूस किया, पर हाले दिल कभी ना ज़ाहिर किया
के बस आगे के अंजाम का सोचते रहे..
हाथ जो आगे आया खामोशी से छोड़ दिया,
कुछ वक्त ने भी यूं रुसवा किया..
बस हर बार समझदारी से सोचने पे मजबूर किया,
वो दोस्तों के संग कहकहे, वो बुलेट के पीछे बैठने के ख़्वाब
वो टीस सी उठती दिल मैं ,दुपट्टे से छुपी वो हंसी की आब,
वो अंदर उबलते से जलजले वो तेज चलती धड़कन
काश मान लेते दिल की बात, दूर करते ये भी उलझन,
बस अफसोस यही, ना कर सके जो मन मैं था
ना जी सके वो लम्हा जो इतना करीब था,
ज़माने बीत गए, अब उनसे कोई वाकफियत भी नहीं है
मगर दिल मैं दबी वो चाह आज भी वहीं है, वहीं है, वहीं है।