गुनाह
गुनाह
मामुली सा दर्द था वो जो वक्त ने हमें दिया था-२
चोट खाई थी सीने पर, ऐसा क्या गुनाह किया था...!
मंजिल जुदा थी हमारी, आये एक मोड से-२
छोडकर चल दिये तुम और रास्ते, ऐसा क्या गुनाह किया था...!!
ख्वाईश थी हमारी ये जिंदगी बसर हो तेरे साथ-२
टूट गया ये ख्वाब क्यूं ? ऐसा क्या गुनाह किया था...!
खुशी कि लहर आंसू के समंदर में डूब गई-२
मतलब से बस तेरा मतलब था, ऐसा क्या गुनाह किया था...!!
अचंभे मे रूह पड गई सोचकर की क्या ये मजाक है -२
एक पल मे मजाक बन गये ऐसा भी, क्या गुनाह किया था...!
फर्क नही तुम्हे इस दर्द का ये सुनकर दर्द भी सहम गया -२
रहम खाकर झूठी मोहाब्बत ही दिखाते, ऐसा क्या गुनाह किया था...!!
तुम भी बस गये अपनी दुनिया में हम भी लौट आये अपने आशियाने में -२
जिस्म के प्यास खातीर रूह को ठुकरा दिया, ऐसा भी क्या गुनाह किया था...!
अब एक झलक के खातिर बार बार दिदार करने आ मत जाना दोबारा -२
जिस मोड पर मिले उसी मोड पर छोड गये, भला हमनें ऐसा भी क्या गुनाह किया था...!!