गुड़िया
गुड़िया
वो गुड़िया मेरे आँगन की,
गुप चुुप सहमी सी,
अस्पताल के चारपााई पर चिपकी सी,
वो गुड़िया मेरे ख्वाबों की,
डरी सहमी मैले चादर मे लिपटी सी,
जिसके मुस्काने की आहट से थकान मेरी हट जाती थी ,
आज बेसुध पड़ी यही पर,मानो मुझसे हो कह रही, और मेरे सपने पर डाल कफन सा,
ना जाने कौन दरिंदा था,
इंसानी वेेेश मे मानो था वो कोई दरिंदा
नन्ही परी कैसे चिथड़े मे पडी़,
कभी दर्द सेे चिखती ,
कभी जोर जोर सेे चिल्लाती,
फिर घंटो बेसुध सी पढ़ जाती
क्या बिगाड़ा था मेरी गुड़िया ने
क्यो चिथड़े चिथड़े कर दियेे थे उसके
क्यो नन्ही जान को मेरे नोचा गया ,काटा गया
कई बार उसे फिर मारा गया ,
मै अंदर से टूटा हुआ, बेटी को एक टक निहारता हुआ
जब बेसुध हो जाती, मैं उसके सांसों पर टकटकी लगायेे
ऊपर तक येे बात गई
अखबार , पुलिस ,टीवी तक
सपने मेरी बिटिया से पूूूछा बस एक ही प्रश्न
मेरी गुड़िया बस एकटक देखे मुझेे
मानो मन मन में हो कहती रहती
अब चलती हूँ पापा ,अब बस मन भर गया
जो फिर आने का मौका मिला
तो यह कह दूंगी उपर वाले से,
इस जनम अब बस हो गया,
करना हो अगर ईश्वर इतना ही किजैा
अगले जन्म मोहे बिटिया ना किजौ।
