"गरीबी"
"गरीबी"
भीषण जेठ की दुपहरी में,
छत नसीब नहीं होती।
कड़कड़ाती ठंड में,
रजाई भाग्य में नहीं होती।
न तीज न त्योहार,
कभी छुट्टी नहीं होती।
अरे! तन पर पूरा कपड़ा नहीं,
कहां देखे हीरे मोती।
रूखी सूखी खाकर मस्त रहता हूं,
शिकायत नहीं करता, काम में लगा रहता हूं।
कभी-कभी तो ऐसी नौबत आती है,
कई-कई दिनों तक रसोई नहीं बन पाती है।
जब रात सुहानी आती है,
पानी पीकर चैन की नींद आती है।
सोच लेता हूं- सुख भी तुम्हारे है,
दुख भी तुम्हारे है।
कैसे छोड़ू भगवन, दोनों ही तुम्हारे है।।