गरीबी की खुशी
गरीबी की खुशी
वो गरीबी देखी है मैंने
जब माँ ने एक रोटी मुझे देकर,
पेट खुद का भर लिया था
जब पापा की जेब मे थे सिर्फ चंद पैसे,
उन्हें मेरी खुशी के लिये वार दिया था।
जब पलकों से झरते एक आँसू
रोकने सारा परिवार हाजिर था
एक दूसरे के लिए
हर वक्त हर कोई मुखातिब था।
जब त्यौहार मनाने में
खुश था सारा जहाँ
मिठाई कपड़े और सजावट में
मशगूल थी ये दुनिया
तब घर पर चूल्हा न जलने पर
भी कितना सुकून था।
एक चमक थी ललक थी
बेटे में माँ को नयी साड़ी दिलाने की
एक भूख थी आँखों में
पापा की जेब भरने वाली
गरीबी में जो अपनापन था
बिन कहे सब समझने का जो ढंग था।
जरूरतें कम खशियो मे घुला मन था
प्यार इतना कि
रोड़ा कुछ भी आये कम था
आज न जाने पैसा है
कपड़े है मिठाई भी है।
पर वो अपनापन नहीं रुसवाई सी है
वो यादें कचोटती हैं बेहद
पर चाहकर भी गरीबी नहीं मिलती
वो चूल्हे की रोटी अधनग्न खेलते
बच्चे कितने अनमोल पल थे।
आज घमंड है समय नहीं,
बेटा है जिसमें माँ बाप के लिये
वो प्यार नहीं
खाना है पर्याप्त पर वो
प्यार वाली एक रोटी नहीं
सब कुछ है पर गरीबी वाला सुकून नहीं।
