गर्भ से लेकर घर तक
गर्भ से लेकर घर तक
कोई देखता है छिपकर
जैसे बाज सी फितरत है उसकी !
नजर नहीं आता
मगर नजर तेज है उसकी !!
किसी गली किसी नुक्कड़ पर
किसी घर की दीवारों में
कोई चीखता है
मगर आवाज कोई नहीं सुनता है,
दोष नहीं किसी का
वो शातिर इतना है
वो जानकर छिपा है अपनों में
क्योंकि अपनों सी छवि है उसकी !!
पकड़ता है नोंचता है
क्योंकि भूख जरूरत है उसकी !
आँखें बंद न हो
क्योंकि शिकार आदत है उसकी !!
वो न रुका है न रुकेगा
आसमान तक परवाज है उसकी !
गर्भ से लेकर घर तक
हर उम्र पर नजर तेज है उसकी !!