गमों की रात
गमों की रात
गमों की ये रात, बड़ी लम्बी लगती है।
ये रात गुजरने का, नाम ही नहीं लेती है।
शायद ये रात, मेरी आजमाइश कर रही है,
कि क्या मैं समेट पाऊँगी इस ज़िंदगी को?
जो तिनका-तिनका, हर पल बिखर रही है।
सुन ले, ऐ काली रात! तुझे ढलना ही होगा।
मेरे हौसले के आगे, सजदा करना ही होगा।
खुशियों की रोशनी से, गमों को बुझना ही होगा।
गमगीन रात को, खुशनुमा दिन में, बदलना ही होगा।
