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SUMAN ARPAN

Abstract

4.5  

SUMAN ARPAN

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गम

गम

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322


शामें गम क्या है तेरा इरादा?समेट ले तु मुझे अपने आग़ोश में, 

गमे सरूर है आज हद से ज़्यादा !

शामें गम....


शमा जल कर बुझ भी गई ऐसे,

पानी में जलाये हो चिराग़ जैसे!

तेरे ज़ुल्मों सितम ने किया ज़ख़्मी ऐसे,

 लहूँ जिगर से रिसने लगा है अब हद से ज़्यादा!

शामें गम.....


लुट कर मेरे ख़्वाबों की दुनिया,

तिनका तिनका मेरा घरौंदा किया 

सदा मेरे दिल की अब भी यहीं गाती हैं 

 प्यार हमने किया है तुमसे रब से भी ज़्यादा !

शामें गम....,


आँसू बहातीं हर शाम मुझसे पूछतीं है 

उन से वफ़ा की उम्मीद टूटती सी है 

रुसवा कर हमारी मोहब्बत को ,

चौराहे पर नीलाम करना था उनका इरादा!

शामें गम...


छोड़ा जब मेरी साथ परछाई ने 

एक ही तस्वीर नज़र आती थी तन्हाई में !

आईने में भी बस तु ही नज़र आता था !

 टूटा शिशाये दिल 

चकनाचूर है काँच बिखरा आधा आधा 

शामें गम क्या है तेरा इरादा ! 


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