गलती क्या थी ?
गलती क्या थी ?
रोज की तरह, चलती जा रही थी
अपनी ही धुन में वह
देर हो गई थी, थोड़ी सी
चिंता सता रही थी यह
कभी बस, कभी ट्रेन की सुस्ती
तो कभी बारिश होती थी वजह
आज तो कुछ, ज्यादा ही देर हो गयी
घर जल्दी पहुंचने की, कोशिश में थी वह
कदम बिना रुके, बढा रही थी
पर गति धीमी हो गई, आकर एक जगह
अगली नुक्कड़ पर खड़े होकर, कर रहे थे मस्ती
चार पांच मवाली लड़कों का था समूह
अकेली लड़की को देख, नियत उनकी बदली
चेहरे की रंगत को उनके, भाँप गयी वह
पांव उन लड़कों के, बढ़ने लगे ओर उसकी
पलटकर दौड़ी, क्यूंकि पीछे पड़ गया गिरोह
ठोकर खाकर पत्थर की, गिर पड़ी
घेर लिया लड़कों ने, पूरी तरह
हाथ पांव जोड़े, रहम की भीख मांगी
उनको दया न आयीं, रो रही थी वह
दर्दनाक चीख उसकी, सन्नाटे को चीर गयी
इंसानियत हुई शर्मसार, हमेशा की तरह
जीवन की सबसे काली रात गहरी
नजारा भी था अत्यंत भयावह
गलती क्या थी बोलो, जो सजा मिली ऐसी
कि इज्जत दांव पर लगी उसकी बिना वजह !