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Dharm Veer Raika

Horror

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Dharm Veer Raika

Horror

गज़ल़

गज़ल़

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"दरख्तों के साए भी धुप लगती है,

बिन पानी के भी प्यास बुझती है" 

दरख्तो के साए भी धूप लगती है,

बिन पानी के भी प्यास बुझती है,


कौन फरमाता है संकोच आता नहीं,

अरे ! भीख मांगने वाले से पूछो,

सुख मिलता नहीं,


दरख्तों के साए भी धूप लगती है,

बिन पानी के भी प्यास बुझती है,

क्या होती है सूर्यास्त की रातें लंबी,

मुसाफिर से पूछो, ना सुलाती कभी,


खाने के बाद भी भूख लगती है,

बिन पानी के भी प्यास बुझती है,

मिला नहीं मां की ममता का प्रेम अपने में,

कितना दुख होता होगा,


वात्सल्य को देखकर सपने,

दरख्तों के साए भी धूप लगती है,

बिन पानी के भी प्यास बुझती है।


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