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राही अंजाना

Romance

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राही अंजाना

Romance

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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जो भी मिलेगा उसमें गुजारा करोगी क्या?

  अपनी ये ज़िन्दगी का खसारा करोगी क्या?


यूँ हो गई है शाम कहीं छुप गई हो तुम, 

  हमसे ही इश्क फिर से दुबारा करोगी क्या? 


इक बात है कहनी मुझे जो अनकही सी है,

  क्या मेरे सर से डर का उतारा करोगी क्या?


खेलोगी मेरे साथ जो हैं खेल अधूरे, 

   जीते हुए भी खेल को हारा करोगी क्या?


मैं दूँ अगर खुशियाँ तुम्हें सारे जहान की,

  फिर भी क्या मेरे दिल से किनारा करोगी क्या?



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