गजल(मां की चुप्पी)
गजल(मां की चुप्पी)
घर के हालात को पहले ही समझ जाती है,
मां अब कुछ नहीं बोलती बस चुप रह जाती है।
वो वक्त भी था जब सब मां की मर्जी होती थी,
हर कार्य संभलता था सुख चैन से, हर कार्य में मां की
अर्जी होती थी।
बेटे की शादी का तूफान ऐसा आया,
बहु आते ही बेटे ने मां को धमकाया,
देख बेटे के तेवर मां को बचपन की याद आती है,
रूठ जाने पर भी ऐसे ही कहता था, यही सोच कर
सब कुछ सह लेती है, मां अब कुछ नहीं बोलती चुप रह जाती है।
लड़ाई हो या झगड़ा चुपके से झांक लेती है,
बहु की क्या है मर्जी खुद
भांप लेती है, खा लेती है
जो मिल जाए, बेटे पर न आफत आए सब सह
लेती है, मां अब कुछ नहीं बोलती चुप रह जाती है।
अपने ही घर में सहमी सहमी रहती है, सुन लेती है
हर बात बहू जो कहती है,
बाहर से हंसती है, अन्दर से सह लेती है,
मां अब कुछ नहीं बोल
ती ,चुप रह जाती है।
नखरे कर खाता था मां से खाना, खा लेता है अब सब कुछ बन अनजाना,
कहने को होती है, पर कुछ नहीं कहती है, बस चुप रह जाती है।
पाल पोस बड़ा जिसे करती भूल जाता है मां को, पत्नी को समझे हमदर्द,
मां लगती है सरदर्द, डांट डपट भी सह लेती है, कुछ नहीं कहती मां बस चुप रह जाती है।
वो क्या जाने, जरूरत पर जेब पैसों से भरती थी,
अब दुआओं से भर देती है, खुद सहती है सब
कुछ ,बोलती नहीं कुछ बस चुप रह जाती है।
बेटे के गुनाहों को अक्सर
धो देती है, जब आता है, गुस्सा बस रो लेती है
देख न पाए कोई यही सोच रखती है, कुछ नहीं
कहती ,बस चुप रह जाती है।
सुदर्शन मां की ममता समझ न पाया, बच्चों के
सुख के लिए हर पल जिस ने दुख पाया, बुढ़ापे में नहीं बनता कोई अपना
पराया, भला बुरा सब सह लेती है, कुछ नहीं कहती ,बस चुप रहती है।