गज़ल हो तुम
गज़ल हो तुम
तप तपाती ग्रीष्म की धूप में
शुद्ध शीतल छाव हो तुम
मेरे हर ज़ख्म ए इश्क़ के
इलाज़ ए मरहम हो तुम
इत्तहाद ए राह पर तुम्हें
मैं दोस्त कहूं या प्रेमिका
दिल ए इबादत ओ सनम
मुहब्बत ए गज़ल हो तुम..........।
सुबह जागू तो तुम्हे देखूं
सूरज कि पहली किरण हो तुम
तुमसे शुरुआत हो जिंदगी
पञ्चांग की सुभ महुरत हो तुम
रूपरंग में हुस्न ए मल्लिका
मैं रंभा कहूं या तुम्हें उर्वशी
सात सूरों का एक सम्भार
ज़िंदगी ए जन्नत हो तुम..........
दूर करे जो नफ़रत के घने
अंधेरे,वो चांदनी रात हो तुम
मेरी ज़रूरत मेरी शोहरत
अल्फाज़ ए जज़्बात हो तुम
मिला जो मुझे साथ तेरा हरदम
मेरा कर्म कहूं या कहूं नसीब
मांगा जो खुदा से"रोहित"ये
जहां मैं, कुबूल ए दुआ हो तुम......