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Baman Chandra Dixit

Romance

4.4  

Baman Chandra Dixit

Romance

बेवजह बेरुखिओं को

बेवजह बेरुखिओं को

1 min
240


एतराज़ कहां तेरे रूठने पे

तुम रोज़ रूठो मैं मनाया करूँ

लेकिन बेवजह बेरुखी से तेरी

कैसे खुद को झुठलाया करूँ।


कुछ फैसलें भी रास आते नहीं

मगर मान लेता रिश्ते के खातिर

नाज़ है मुझे तेरी समझ पे लेकिन

नाराज़गिओं को कैसे रिझाया करूँ।


कुछ ऐसा रिस्ता दरमियाँ हमारे

ना तू छोड़ सकी ना मैं तोड़ सका।

फिर क्यों ये बेवजह का खींचतान

कर इशारा मैं जाँ लुटाया करूँ।


मुझे मालूम है तुझे है भी पता

बिन एक के दूजे का मोल नहीं

छोड़ तोल मोल का बातें आ मिल

सुन ग़ुज़ारिश मैं सुनाया करूँ।


मिल जाये अगर सुर तेरा मेरा

सात सुर भी फ़ीका हो जाये

तू गुनगुना प्रेम राग मधुर

संग तेरे मैं सुर मिलाया करूँ।


एतराज़ कहाँ तेरे रूठने पे

तुम रोज़ रूठो मैं मनाया करूँ।


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