शुरु से शुरु
शुरु से शुरु


वो बोली कि तुम इंसान तो अच्छे हो
मगर प्यार में थोड़े कच्चे हो
इश्क़ में क्या इतना भी सच बोला जाता है!
प्यार में अपना वजूद नहीं खोया जाता है
मैं बोला प्यार वार मैं ना जानूं
लेकिन तुम हाथ की चूड़ी मत बनना
खनकते, संवरते आखिर में टूट मत जाना
लम्हा लम्हा समेटकर हमने
एक आशियां बनाया है
सब कुछ लुटाकर हमने
टूटता घर बचाया है
जो कुछ भी नोक झोंक हुई
ये तो चलता रहता है
ये सब खेल वक़्त रचाता है
इंसान तो सिर्फ किरदार निभाता है।