Dhruv Oza

Romance

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Dhruv Oza

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Free

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कुछ एक सा रिवाज़ तुम भी रख्खो

खयाल ही सही लेकिन उसमें तुम हमे रख्खो

रिश्ते है जुड़ते है टूटते है लेकिन कहानी जारी है

युही कभी पर्दादारी तुम हमारी भी रख्खो


ये जन्मो-जनम का प्यार ये दोस्ती नही समजमें आती

बस तुम अब ना हिसाब किताब सारा कुछ रख्खो

कुछ बुरा कहो कुछ अच्छा कहो ओर खामोश हो

युही आपसमे सदाचारिया तुम तमाम रख्खो


ओर ना ये वादे ये कसमे क्यों ही खाई जाए

आपस मे यार इतना एतबार तो तुम रख्खो

यहाँ महाभारत तो हमे लिखना है नही तो फिर क्यू ना

दो चार बातों में ये आहट ये नज़ाकत तुम रख्खो


आपसमें हम सुलह कर लेंगे

क्यों बीच मे नई तूम एक खिड़की रख्खो

एक ही साँस की ये सारी कसमकस जिंदगी की

लो थोड़ी साँसें तुम हमारी उधार ही रख्खो।


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