गजल
गजल
आपकी तन्हाई को अपना समय लेते हैं
गर चाँद को साथ मे,तो तारें अपना समझ लेते हैं
चाँद के पास का सितारा हसीं लगता है
जब ना देखूं आपको अफसाने अधूरे लगते हैं
माना की मेरी हर फितरत से आप वाफिक है
तो दिल-ए-दास्तां मेरी क्यों अनसुना करती है
चलो कोई तो है जो मुझे समझा इस जहाँ में
वरना,कांटो से कौन दिल लगाना चाहता है
माना की मेरी शक्ल आपको नापसन्द है
पर इस दिल का क्या जो आप पर मर मिटा है।