गजल(दर्द)
गजल(दर्द)
कुरेद देते हैं हरे ही जख्मों को
मरहम कोई लगाता नहीं,
तड़पता रहे गिरा हुआ सड़क पर जो,
कोई आगे बढ़कर उठाता नहीं।
तल्खियां बढ़ गई इस कदर,
रूठे रिश्ते को कोई मनाता नहीं।
खो रहा है बचपन बच्चों का
कागज की नाव कोई चलाता नहीं।
खत्म हो गए मेले दंगल
ख्वाब ऐसे कोई सजाता नहीं।
दर्द दिलों के दिलों में ही रहते,
क्या मर्ज है कोई किसी को बताता नहीं।
जिंदा इंसा बन कर रह गए लाशें सुदर्शन,
बूढ़े असहायों को कोई बुलाता नहीं।