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Bhavna Thaker

Classics

4  

Bhavna Thaker

Classics

गीला मन

गीला मन

2 mins
307


ग्रीष्म की शाम के साये मेरे शहर को भिगो देते है तुम्हारी यादों के पसीने में पसीजते, 

मेरे मन के साथ कायनात का हर ज़र्रा गीला महसूस होता है..


मेरे खयालों की दुनिया तुम्हारे होने से ही आबाद है तुम नहीं तो नाकाम होती है हसरतें.. 'मुर्दे सी बेजान' 

एक ज़िंदगी में तुम साँसें भरते हो जान, गाहे-बगाहे आया भी करो..


जिस्म की खुशबू तरबतर है तुम्हारी छुअन से 

झनझना उठती है धड़कन, सनसनाती हवाओं संग जब तुम्हारी यादों की सरगम सदाएं देती

उतर आती है मेरे खयालों की अंजुमन में, कितनी असरदार होती है यादें...


ग्रीष्म की एक तप्त शाम मेरे भाल को चूमकर तुमने कहा था तुम मेरी हो इतना याद रखना,

उस मोड़ को कैसे भूलूँ जहाँ से तुम मुड़े थे ये कहकर की इंतज़ार करना एक दिन आऊँगा..


उस शाम को रोके बैठी हूँ,

मैं तो ताउम्र तुम्हारी ही हूँ बस आकर इतना बता दो क्या तुम भी सिर्फ़ मेरे हो?

ऐसे कई जन्म इंतज़ार में काट लूँ गर हल्का वादा तुम मेरी हथेली पर रख दो..


देखो डूबता सूरज कह रहा है मेरे कान में आकर, 

आता है तेरा महबूब तो बैठा रहूँ मैं भी धरती की धरी पर एक बेतहाशा मधुर मिलन को मैं भी देखता चलूँ...


कहो रोकूँ की डूब जाने दूँ मनचले सूरज को? 

चलो एक आस का दरिया उडेल दूँ कल तक इंतज़ार के फूल में अश्कों की चार बूँद छिड़कते..


गीला मन यादों की टहनी पर सूखा लेती हूँ खुद को समझाने में माहिर बना दिया है तुम्हारे फासलों ने,

ऐसी बातों से दिल बहला लेती हूँ। 



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