घर की इज्ज़त
घर की इज्ज़त
पति व पत्नी में हुई तक़रार, पति बोले बारम्बार।
तुम केवल मेरी वजह से, सम्मानित होती हर बार।
तभी पत्नी बोली -
आन मेरे हाथ जब चाहूँ, मैं इसे बिगाड़ सकती हूँ।
तैश में मत आओ इसको, पल में मिटा सकती हूँ।
बात आई-गई हो गई, सेठ को न था कोई स्मरण।
तीखी बात व तंज सेठानी, न कर पाई विस्मरण।
बैठे मित्रगण अचानक, रोने की आवाज़ थी आई।
सेठ हुआ व्याकुल पूछा, बेटा क्यों रो रहा है साईं।
भरे पेट यह खिचड़ी खाने की, ज़िद्द कर रहा है।
सेठ बोला थोड़ी-सी और, देने में क्या हो रहा है?
सेठानी चिल्लाई घर में, और भी लोग हैं खाने को।
खिचड़ी इसे दूँ तो दूसरों को, क्या दूँगी खाने को?
पूरी महफ़िल शांत, हो रही आपस में कानाफूसी।
कैसा यह सेठ झगड़े की जड़, है ज़रा-सी खिचड़ी।
पगड़ी उछली सब उठे, घर में अशांति थी फ़ैली।
सेठ बोला वापिस ला दो, इज्जत थी चली गई ।
मित्र बनाते थे बातें, अब वापिस लाकर बता देना।
कुछ नहीं बिगड़ा, आने का निमन्त्रण तुम दे देना।
सेठ ने मौज़-मस्ती के बहाने, सब को था बुलाया।
तभी अचानक बच्चे ने, रोना-चिल्लाना मचाया।
सेठ बोला-
हमारा बेटा क्या फिर, खिचड़ी के लिए रो रहा है ।
सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे-
मामूली-सी खिचड़ी हेतु, रोज झगड़ा हो रहा है।
सेठ मुस्कुराते हुए बोला, खिचड़ी यहीं ले आओ।
हम अपने हाथों से खिलाएँगे, इसे यहीं ले आओ।
खिचड़ी थके हुए हमारे, मित्रों को भी खिलाओ।
सेठानी ने आवाज लगाई, खिचड़ी लेकर आओ।
ज्यों परोसी खिचड़ी, तो दोस्त अत्यंत थे हैरान।
खिचड़ी में खजूर, पिश्ता, किशमिश, थे बादाम ।
मन -मन सोचने लगे, जब इसे खिचड़ी बोलते हैं।
मावा, छेना, खोया के व्यंजन, को क्या कहते हैं?
यह सुन सेठ की इज्जत को, चार चाँद लग गए।
सब आपस में सेठ की रईसी की, बातें करने लगे।
सेठ ने सेठानी से हाथ जोड़, कहा तुम्हें मान गया।
घर की औरत मान बढ़ाए, बिगाड़े मैं जान गया।
जो व्यक्ति अपने ही घर में, सम्मानित नहीं होता।
वह विश्व में कभी, कहीं भी, सम्मानित नहीं होता।