घिरे घनघोर तिमिर
घिरे घनघोर तिमिर
घिरे घनघोर तिमिर यहाँ भयंकर
सर्वस्व दहन कर लड़ पड़े कूदकर,
घर के दीपक बुझकर के
टूट गये अंतरमन में,
डेरा लगाया अंधेरे ने यहाँ
ना हुआ सबेरा आसमान में।
मिट गये पुरुष यहाँ
चढ़ी बालायें हवन में,
जौहरों में कोहरे बने घने
बली की लड़ी बनी भंवर में,
देव भी लुट गये दानव भी लूटे
लुट गये सब घरबार संसार में,
मंदिर भी लूटे गुंबद भी लूटे
ना बचे कोई नगर में।
कौन सी जीत किसकी जीत
क्या मिला अलभ्य अलंकार,
और किसे मिला स्वर्ण सिंहासन
और अनमोल अलख सरकार।
लड़ रहे जवान देश के लिये
मर रहे जवान सेकां सेंकी में
खड़ी थी माताएँ लिये द्वार पर
अंसुवन की धार आँखों में।।