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Agam Murari

Tragedy Fantasy

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Agam Murari

Tragedy Fantasy

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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दिन को भी डेरा डाल रखा हैं अंधेरा

मेरे कमरे में आने से डरता हैं सवेरा


बारिश में तेरी स्मृति को बहा दिया

अब मेरे अंदर कुछ भी बचा नहीं तेरा


गम थका–हारा–बेबस मुसाफिर हैं

कुछ दिनों के लिए ठहरा हैं घर मेरा


काल कोठरी का कैदी हैं ‘ अगम ’

नहीं होगा अब कभी बंगलो में बसेरा



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