तुम्हें भूलूं कैसे
तुम्हें भूलूं कैसे
हर कोशिश नाकाम रही
तुम्हे भूल जाने की
हिमालय नापा, काशी डूबा
एक तेरी याद ना आने की
मेरे नैन नमकीन हो जाता
जब तेरी स्मृति की सागर को जाता हूं
परिवर्तित होकर तेरा ही रूप ले लेता
जब भी अपने अंदर का प्रेम पिघलता हूं
खुद को वृत मानकर व्यास खींचा
पर तू केंद्र बिंदु बनकर बैठी हैं
अपने इश्क को मैने रसायन किया
मुझमें बसी तू शुद्ध सोने जैसी हैं
व्याकरण से तुम्हे संधि विच्छेद किया
पर तू प्यार का पर्यायवाची हैं
सोचा अपने इतिहास से तेरा नाम मिटा दूं
पर मेरे सांसो के तोरण एवं परिक्रमा की सांची हैं
नहीं हो पता हैं किसी और के साथ रहना
अब तुम ही बताओ, तुम्हे भूलूं कैसे।