ग़म
ग़म
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अपने ग़म को मैं तुमको सुनाने चला हूँ,
सोचा है यह मैंने, कुछ तो कम ये होगा,
शायद कहीं से मरहम सा मिलेगा,
पर कदम क्यों मेरे, ठिठक से गए है,
चलते –चलते ना जाने रूक क्यों गए है,
ये मैं क्या करने चला हूँ,
ग़मों के इस दरिया को सागर बनाने चला हूँ,
क्या इस दुनिया की फितरत को जानता नहीं हूँ,
कुछ तो हँसेंगे, कुछ झूठी सहानुभुति भी देंगे,
तेरे जख्मों पर नमक ही छिड़केंगे,
ये तो सोच कुछ तो है, जो तेरा साथ देंगे,
रिश्ते, दोस्त भी अकेला छोड़ देंगे,
पर दर्द तेरा, तेरा ग़म साथ तेरा कभी ना छोड़ेंगे।