महाभारत: द्वंद का परिणाम
महाभारत: द्वंद का परिणाम
महाभारत कोई घटना नहीं थी,
क्रिया कर्म प्रमाण था,
मानव के मन की वेदना,
द्वंद, द्वेष का परिणाम था।
नियति स्वयं चुनती मार्ग है,
कर्ता भले बनता कोई,
माध्यम साधन चक्र में,
फंसता कोई तरता कोई।
संघर्ष का संघर्ष से,
अधिकार का अधिकार से,
विद्वेष का विद्वेष से,
प्रतिघात का प्रतिघात से,
टकराव निश्चित नियति है,
प्रतिशोध की ये रीति है,
कि पक्ष दोनों हारते हैं,
मरते हैं ख़ुद भी मारते हैं।
युद्ध से सुख का कभी भी,
मार्ग बन
ता है नहीं,
समर भले ही धर्म का हो,
विध्वंस टलता है नहीं।
मानव भुजंग सम जब युगों में,
स्वार्थवश फुंकारता है,
गरल छाता है मनों में,
समर को ललकारता है।
समर का आरंभ कदाचित,
एक पक्ष करता नहीं,
लोभ से मरता है मानव,
युद्ध में मरता नहीं।
रणघोष की हुंकार का,
दायित्व किस पर है कहो,
किलविष मनस था कौन सा,
आरोप ये किस पर गहो।
युग के मानस चित्त का ये,
सामरिक परिणाम था,
महाभारत घटना नहीं थी,
क्रिया कर्म प्रमाण था।।