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Suchismita Behera

Abstract

3.4  

Suchismita Behera

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ऐ समय

ऐ समय

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ऐ समय तु कब थकेगा ?

इस ज़िद्दि कोरोना को कब तक नापेगा ? 

जवाब है तो बताता क्यों नहीं ?

आखिर छुपाके रखेगा कब तक हमें यूं ही।


हर बार परिणाम के इंतजार में

बारी-बारी इम्तिहान के दौर बढ़ते गए

उम्मीद की आस में, तेरे बनाए इस राह पर

ये कदम बस चलते गये, बस चलते गये।


जरा सोच उस ग़रीब की आत्मा को

जो पिडित सही पर पराजित ना हो रहा

फर्क सिर्फ इतना है उनमें और हम में

हम बिताते गए और वह तुझे काटता गया।


तु भी क्या कर सकता है ?

भला तेरा इसमें अभियान क्या ?

खेल तो चलता आ रहा है

बस अंजाम का इंतजार रहा।


ऐ समय बस इतना बता दे

क्या तु कभी थकेगा भी ?

या मैदान के ये दोनों खिलाड़ी

लड़ते रहेंगे बस ऐसे ही।


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