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kunwar singh

Abstract

4.3  

kunwar singh

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वापसी

वापसी

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कुछ रिश्ते बड़ी मुश्किल होती है।

बयाँ कर पाए या बना रहे हमेशा।।

अनजान सा यूँ ही बीता था कुछ पल।

साथ बीते पल ने दोस्त बना दिया।।


लम्हें कुछ यूँ बीते साथ भरोसा मिला।

इन लम्हों में कुछ दिल भी टूटे है।।

दोस्ती और दोस्त के चेहरे नये बने।

कुछ भरोसा यूँ टूटे के जुड़ ना सके।।


ऐसे ही कुछ कहानियाँ, बन गई है दोस्ती के।

यूँ तो आसमान में चाँद एक ही होता है।।

पर क्या कहें ये दोस्ती का जो कहते हैं।

धरती पर यूँ ही चाँद एक दूसरे में देख लेते हैं।।


हम ने गाना क्या सुना नागिन वाला।

लोगों को भिंडी की सब्जी पसंद आ गई।।

दही जो बन नही पाया, दुध खराब मिला क्या।

खिचड़ी हुआ मिला साहिल भी किचन में।।


तनाव भी कुछ हुआ और दिल से शोर मचाया।

पर क्या कहें जनाब जिंदगी की लहरें ही तो है।।

समंदर में लहरें चाहे कौतुहल कितनी भी कर लें।

साहिल से टकराकर लहरें लौट ही जाती है समंदर में।।


-कुँवर


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