वजूद
वजूद
खुद ही खुद का वजूद कभी लिखते है मिटाते है
ज़र्रा - ज़र्रा दुनिया में इस क़दर सिमटते जाते है।
करिश्मों के भरोसे बैठा कोई मुंतजिर
किस्मत के आगे यूं पटक रहा अपना सिर
कि होगा उजाला कभी उसकी भी राहों में
आएगी खुशियां कभी उसकी भी बाहों में
सच्चाई से खुद को क्यों छिपते है छिपाते है
ज़र्रा - ज़र्रा दुनिया में इस क़दर सिमटते जाते है।
उदास ना हो रात के बाद सवेरा भी है
अर्जी कर उससे वो ख़ुदा तेरा भी है।
वक़्त की गोद में एक छोटी सी पनाह लेे
ख्वाहिशों में थी जो बरसों से जाकर वो राह लेे
सफर - ए - ज़िन्दगी पर मुसाफ़िर आते है चले जाते है
खुद ही खुद का वजूद कभी लिखते है मिटाते है
ज़र्रा - ज़र्रा दुनिया में इस क़दर सिमटते जाते है।