क्यों घुट घुट कर यूँ जीता हूँ
क्यों घुट घुट कर यूँ जीता हूँ


सारी तकलीफों को दिल में समेटे,
नित गम के प्याले पीता हूँ,
क्यों घुट-घुट कर यूँ जीता हूँ।
कैसे बयां करूँ अब,
हाल मेरा बेहाल है।
खुशियाँ क्यों अब धीमे है,
और तीव्र दुःखों की चाल है।
मुस्काने हैं बिखर गई,
आंसुओं से टूटे दिल को सीता हूँ,
क्यों घुट-घुट कर यूँ जीता हूँ।
चुपचाप सह जाता हूँ सब कुछ,
क्यों आह भी न निकल पाती।
आदत सी हो गई दर्द की,
क्यों खुशहाली भी नहीं आती।
जिंदा हूँ पर थम सा गया,
वो समय सा मैं भी बीता हूँ,
क्यों घुट-घुट कर यूँ जीता हूँ।