गीत
गीत
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गीत से प्रीत लगाता हूँ,
मैं अपने गीत गाता हूँ।
एक कोरे कागज़ की प्यास को,
मैं स्याही से लिख बुझाता हूँ
मैं अपने गीत गाता हूँ।
सारी मन की बात कह दूं मैं,
सुरों के साथ थोड़ा बह लूं मैं,
आत्मा की आवाज़ को सुन,
मैं नित नई राग लगाता हूँ,
मैं अपने गीत गाता हूँ।
होती क्या गीत की भाषा, जान लूं मैं,
इन्हें जन - जन में फैलाने की ठान लूं मैं,
मन की बात हो या अन्तरात्मा की,
मैं सभी तक पहुँचता हूँ,
मैं अपने गीत गाता हूँ।
मैं अपने गीत गाता हूँ।।