एक कत्ल ईमानदारी का भी
एक कत्ल ईमानदारी का भी


एक - दो - तीन नहीं हजार होते हैंं
यहां कत्ल ईमानदारी के बार - बार होते हैं ।
मुखोटो पर मुखोंटे और ना जाने कितने चेहरे ,
दिखने में मासूम पर होते राज़ इनमें गहरे ,
वफ़ा की कदर किसे बस बेवफ़ाई आती हैं
क्यों नशे से ही आजकल तन्हाई जाती है ।
परदों के पीछे बेकसूर , खुलेआम गुनहगार होते हैं ,
यहां कत्ल ईमानदारी के बार - बार होते हैं ।
यहां नरम कोई नहीं सभी को सख्त होना हैं
मुठ्ठी भर वक़्त को भी चुटकी भर वक़्त होना हैं
प्रकृति भी कह रही अपनी दास्तां जोर - जोर से ,
कभी ज़ोरदार बारिश , कभी तूफ़ानों के शोर से ,
मरहम बनता कोई नहीं बस ज़ख्मों पे वार होते हैंं
यहां कत्ल ईमानदारी के बार - बार होते हैं ।