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Prashi Joshi

Abstract

4.9  

Prashi Joshi

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जीने की नई राह

जीने की नई राह

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अतीत से अब बाहर निकलो,

पुरानी बातें क्यों कहते हो।

क्या कल में हे रहना,

कल पर क्यों बल देते हो।


सीखो नई जीवन की राहें,

अब खोल भी दो अपनी बाहें।

मन भी एक पंछी की भांति,

खुले गगन में उड़ना चाहे।


जो परे है, जो दूर है,

क्यों उसकी सोच में रहते हो,

कल पर क्यों बल देते हो।


हो गया जो अब तक,

और जो आगे है होनेवाला,

भूत और भविष्य के बीच,

मैं आज न अपना खोनेवाला।


आज ही तो तुम्हारा सत्य है,

क्यों सपनों के सागर में बहते हो,

कल पर क्यों बल देते हो।


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