मैं शिशु और तू ब्रह्मा
मैं शिशु और तू ब्रह्मा
जब तूने जन्म दिया मुझको मैं रचना तू ईश्वर मेरी
जब मुस्काई मेरी नादानी पर मैं शिशु और तू ब्रह्मा मेरी
मेरे रोने पर तू रोई धरती पर ममता पूर्ण हुई
सबसे सुंदर तेरी रचना, बाकी रचनाएं अपूर्ण हुईं।
जब चोट लगी मुझको थोड़ीतेरे रोम—रोम में दर्द हुआ
मेरे जीवन में दुख् न हो तूने जीवन भर की ये दुआ
तेरे आंचल की छाया का मां कोई पारावार नहीं
जबतक है तेरी कृपा मुझपर, मुझे ईश्वर की दरकार नहीं
मां तेरे हाथों की तीखी चटनी में थी इक मिठास
मैं ढूंढ रही हर रोटी में तेरे हाथों का वही स्वाद
मां धूलभरे मेरे ललाट को तू चूम के मुझे जगाती
च
लती उंगली थामे तेरी, दुनिया कदमों में आती
मिट्टी के चूळहे से उड़ती सोंधी खुश्बू इस दिल में बसी
मां करू क्या शब्दों से उपमा, तू उपमाओं की सूरज सी
मां शब्द असंख्य रचे जायें, तुम अतुलनीय अम्मा मेरी
ईश्वर को भी रचने वाली, सबसे सुंदर रचना तेरी
कितने ही कागज़ भर जायें कितनी उपमायें लिख जायें
तुलनाओं का सागर भर जाये, या कलमों का अंबार लगे
फिर भी न लिख पाउंगी, मां तेरी कालजयी गाथा
जीवन शब्दों को अर्थ मिलेगा, मां चूम ले बस मेरा माथा
मेरे रोने पर तू रोई धरती पर ममता पूर्ण हुई
सबसे सुंदर तेरी रचना, बाकी रचनाएं अपूर्ण हुईं।