ग़म का समंदर
ग़म का समंदर
ग़म का समंदर वो,
अपने सीने में छुपाता है।
तन्हा है साहब,
वो हर बात पे मुस्कुराता है।
महफ़िल में सबको वो,
जी भर के खूब हंसाता है।
पर आईने के पास बैठकर,
खुद को खूब रुलाता है।
कोई रूठा है शायद उससे,
हर वक्त जिसे वो मनाता है।
नींद भी उसे नहीं आती,
नींद को अब वो सुलाता है।
