STORYMIRROR

Avinash Kumar Barnwal

Abstract

3  

Avinash Kumar Barnwal

Abstract

चराग जरा आहिस्ता जलो

चराग जरा आहिस्ता जलो

1 min
287

रात अभी बहुत लंबी है चराग जरा आहिस्ता जलो

मोड़ होंगें अभी कई राहों में, चराग जरा आहिस्ता जलो।


माना पहले मिल जायेगी मंजिल तेज चलने से मगर

अपने दूर हो जायेंगे, चराग जरा आहिस्ता जलो।


खामोश हो बहुत, तुम भी नाराज हो क्या मुझसे

बैठ ! दो बातें कर लेते हैं, चराग जरा आहिस्ता जलो।


बिछड़ा था इक साथी इसी मोड़ पर कभी मुझसे

उसे भी पुकार लेते हैं, चराग जरा आहिस्ता जलो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract