STORYMIRROR

Archana Tiwary

Tragedy Others

4  

Archana Tiwary

Tragedy Others

घाव

घाव

1 min
179

रक्त न बहा घाव से

   थक्का बन अंदर ही अंदर

टीस देता रहा

   आँखों के जरिये

    अश्क़ बन बहता रहा

 इन आँसुओं को न देख 

   पाया कोई

छुपा लेती है वो अपने को

    पलकों के परदे में

कभी कभी टूटना भी जरूरी है

   जुड़ने का नया तरीका जो

         सीखा जाती है

मुखौटों में छिपे इंसान के

     चेहरे दिखा जाती है

न समझो सबको तुम 

 इतना अपना क्योंकि

इनके दिए घाव

   भरते भी नहीं

बहते भी नहीं 

रक्त इन घाव से

   थक्का बन कर

     अंदर अंदर टीस देते रहते हैं

वक़्त बेवक्त अश्क़ बन

  आँखों को जरिया बना

निकल जाते हैं


    




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy