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Chandresh Kumar Chhatlani

Tragedy

4  

Chandresh Kumar Chhatlani

Tragedy

गाँव की व्यथा

गाँव की व्यथा

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वो था हरा भरा ईश्वर की प्रकृति के प्रभाव से

न कुछ कहता, मैं चुप ही रहता, अपने स्वभाव से


मुझसे किसी को दुःख देने की कोशिश हो - नहीं नहीं

मेरे दिल में रमी हुई कोई साजिश हो - नहीं नहीं

नाम की नहीं - शिक्षा कर्म की पाई - अपने ही गाँव से


बढने की कोशिश करें तो कोई पीछे खींचे - उफ़ दुनिया

मीठे पानी से प्यासी धरती को कैसे सींचे - उफ़ दुनिया

बन गया गाँव मेरा - ऊँची इमारतों का अड्डा - जुए के दांव से



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