गाँव की व्यथा
गाँव की व्यथा




वो था हरा भरा ईश्वर की प्रकृति के प्रभाव से
न कुछ कहता, मैं चुप ही रहता, अपने स्वभाव से
मुझसे किसी को दुःख देने की कोशिश हो - नहीं नहीं
मेरे दिल में रमी हुई कोई साजिश हो - नहीं नहीं
नाम की नहीं - शिक्षा कर्म की पाई - अपने ही गाँव से
बढने की कोशिश करें तो कोई पीछे खींचे - उफ़ दुनिया
मीठे पानी से प्यासी धरती को कैसे सींचे - उफ़ दुनिया
बन गया गाँव मेरा - ऊँची इमारतों का अड्डा - जुए के दांव से