फ़र्क
फ़र्क
फ़र्क तुम्हें कहाँ पड़ता है,
मेरे होने ना होने से,
माशूका तुम्हारी इश्क़ नहीं हूं।
वजह हूँ मुसीबतों का,
जहर की तरह घुल जाऊंगी,
विष ना भर तुम्हारी मेहर नही हूं।
अपनी हद की समझ है मुझमें,
तुम्हारी सीमाओं को लांघ कर,
जीवन के खुशियों की खुदगर्ज नही हूं।