एसिड-अटैक
एसिड-अटैक
क्यों मेरा आईना मुझे रूलाता है
चेहरे पर पड़े नकाब को देखकर अक्सर मुझे चिढ़ाता है
हर शख्स मुझे देखकर ठिठक जाता है
पास आने से भी वो कतराता है
फिर चेहरे के सूखे जख्मों को देखकर
मन के जख्मों को हरा कर जाता है
मन भी रोज ही अतीत में गोते लगा जाता है
मेरी सुंदरता के कसीदे पढ़नेवाला
वह शख्स रोज ही याद आता है
उसके प्रेम-प्रस्ताव को खारिज करके
एसिड-अटैक का घटनाक्रम आँखों में घूम जाता है
मेरी जिदंगी के सुनहरे अध्याय
तब से काले-स्याह हो गए,
रोज तिल-तिल मरते कई साल हो गए,
रोज एक ही कानफोड़ू आवाज मुझे सुनायी आती है
मेरा देश बदल रहा है
आगे बढ़ रहा है
सुनकर मुझे यह लगता है
क्या, नारी के प्रति लोगों का रवैया भी बदल रहा है ?
