एकता का बल
एकता का बल


मिट्टी का कण- कण मिलकर
पर्वत रूप ग्रहण कर जाता है।
बूंद- बूंद से नदिया बनती,
नदियों से सागर बन जाता है।
ईंट-ईंट मिलकर घर बनता
पुर्ज़ा-पुर्ज़ा मिलकर मशीन।
पेड़-पेड़ मिलकर बाग वन,
फूल-फूल से बनती बगिया रंगीन।
प्रकृति एकता का महत्व बताती,
सच्चाई से मुह न मोड़ो।
कुदरत एकता का बल दिखलाती
स्वार्थ के पीछे ही मत दौड़ो।
धरती कहे पुकार के
मानव को मानव से जोड़ो,
अहम, ईर्ष्या, द्वेष सब छोड़ो।
एक एक ग्यारह बन गए जो,
हिंसा, ख़ौफ़ की छुट्टी हो जाएगी।
धर्मों का सम्मान हुआ जो,
ये उंगलियां मिलकर मुठ्ठी हो जाएंगी।