सरहद पर ऐ जीने वालों।
सरहद पर ऐ जीने वालों।
सरहद पर ऐ जीने वालों!
सरहद पर ऐ मरने वालों!
सरहद पर ऐ जीने वालों !
सरहद पर ऐ मरने वालों !
वतन की आन-बान में जिंदगी बिताने वालों,
वतन की हिफाजत में में जिंदगी गंवाने वालों।
सलाम-ए-इश्क कुबूल हो तुम्हें,
मुबारक हो तुम्हें दुआएं मुल्क की।
सरहद पर ऐ जीने वालों !
सरहद पर ऐ मरने वालों !
मातृभूमि की रक्षा की खातिर,
दामन अपनी मां का जो छोड़ा तुमने।
मिट्टी की लाज की खातिर,
पिता की लाठी से भी मुंह मोड़ा तुमने।
बंदूक की गोलियों के तले,
खनकती हरी चूड़ियां तुमने ना सुनी।
दुश्मन की ललकारो के आगे,
बिलखती नन्ही की किलप तुम्हें थी अनसुनी।
सरहद पर ऐ जीने वालों !
सरहद पर ऐ मरने वालों !
बचपन की लोरियां अब अजनबी-सी थी,
जश्न-ए-मोहब्बत अब वतन पर कुर्बान थी।
दोस्त थे दूर, अपनों का साथ ना था।
कफन से प्यार था, थी मौत से दोस्ती।
सांस रुक जाए,
पर तिरंगा ना कभी झुकेगा।
वीर वतन की खातिर जिया है,
वतन की खातिर ही मरेगा।
सरहद पर ऐ जीने वालों !
सरहद पर ऐ मरने वालों !
वतन की आन-बान में जिंदगी बिताने वालों,
वतन की हिफाजत में जिंदगी गंवाने वालों।
सलाम-ए-इश्क कुबूल हो तुम्हें,
मुबारक हो तुम्हें दुआएं मुल्क की।
सरहद पर ऐ जीने वालों !
सरहद पर ऐ मरने वालों !
