अहंकार का समर्पण कर
अहंकार का समर्पण कर
अहंकार है एक भावना, खुद को समझें औरों से बेहतर
अहंकार से हो जन्म, अन्याय, अत्याचार, भेद भाव का
ईश्वर की भेंट ये जीवन, शुक्र कर तू उसका
सृष्टि के नियमों में तू रह, नम्रता का गुण अपना
मन की इच्छाओं को त्याग, ईश्वर की तू भक्ति कर
मैं, मेरा, मैंने हैं अंतरंग साथी, त्याग करना है मुश्किल
ईश्वर ने दिया सब कुछ, मूर्ख मानव समझे मैंने पाया
ईश्वर का किया सब कुछ, दम्भी मानव समझे मैंने किया
भौतिकता का पर्दा पड़े मन पर, अहंकार बढ़े मन में
अहंकार है वह बीज, जन्म हो अन्य विकारों का
होता है अहंकार रूप, धन, पद, यौवन का
अहंकार हो रूप का, एक दिन ढल जाना है
अहंकार हो यौवन का, एक दिन बुढ़ापा आना है
अहंकार हो धन का, धन तो आना जाना है
अहंकार हो पद का, एक दिन छूट ही जाना है
अहंकार है असाध्य रोग, मौत के साथ ही जाना है
पूजा पाठ से न हो अंत, बढ़े अहंकार और भी
हम न शरीर, हम हैं आत्मा, दुर्लभ जीवन पाया
समर्पण करें अहंकार का, ईश्वर के चरणों में
जीवन को बनाएं सार्थक, लगाएं मानव सेवा में।
