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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

"जिम्मेदार"

"जिम्मेदार"

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वो आदमी हो जाते हैं,बड़े समझदार

जो वक्त से पहले हो जाते हैं,जिम्मेदार

दुःखों का पहाड़ क्या बिगाड़ सकता,

जब सर पर हो,कर्तव्यनिष्ठ पर्वत भार


हर कष्ट उनके लिये होते हैं,सूक्ष्म विचार

जिनकी सोच में बसे होते हैं,ऊंचे किरदार

उनकी चलती हैं,जग-दलदल में पतवार

जो कर्म करते हैं,दुनिया मे बस लगातार


वो ही लोग बनाते हैं,दुनिया में इतिहास

जो वक्त से पहले हो जाते हैं,जिम्मेदार

वो शूलों में भी बन जाते हैं,आफताब

जो जख्म सहकर,मुस्कुराते हैं,हरबार


उन पत्थरो से भी आ जाती हैं,झंकार

जब कोई कर्मवीर करता हैं,ऊंची हुंकार

पर साखी जिनके हृदय में हैं,अहंकार

वो चंदन होकर भी पाते हैं,विषधर नाग


यह दुनिया उनकी होती हैं,तलबगार

जिनके भीतर होती हैं,सत्य,नेकी अपार

उन्हें रब वक्त से पहले बनाता,ज़िम्मेदार

जिनके भीतर जलती हैं,अग्नि बेसुमार


यूँही न बनाया रब ने,सर्व जीवन संसार

कोई न कोई लक्ष्य का जरूर रखा,तार

पर खुदा उसे देता हैं,दुःख,कष्ट कतार

जिसके पास होता हैं,हर मर्ज ईलाज


वो आदमी हो जाते हैं,बड़े समझदार

जो वक्त से पहले हो जाते हैं,जिम्मेदार

वो दरख़्त ही बनते हैं,साखी फ़लदार

जो झंझावतों से टकराते हैं,बारम्बार


बिल्ली रस्ता काटती सोचती,कई बार

इनका क्या करूं,यह इतने ईमानदार

तम चीरते,ऐसे जैसे हो कोई चराग

जो वक्त से पहले हो जाते हैं,जिम्मेदार


करते हैं,हर बुरे कार्य से वो इनकार

जो होते हैं,जिंदगी के अच्छे चित्रकार

अच्छाईयों के गुणों से होते हैं,फनकार

झूठ,बेईमानी का का देते हैं,वो तार


वो आदमी हो जाते हैं,बड़े समझदार

जो जग-ठोकरों से पाते हैं,जगत-सार

उन्हें कोई न दगा दे सकता हैं,रिश्तेदार

जो अपनों की ठोकरों से बने,समझदार।


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