सदाचार की खुशबू
सदाचार की खुशबू
सृष्टि के कण कण में बसी खुशबू चारों ओर है
जिधर भी देखूँ सृष्टि में खुशियाँ चारों ओर है
पेड़ -पौधे , जीव - जंतु प्रकृति के नियम में रहते हैं
कभी न वे ईर्ष्या भाव दिखाते, मिलकर सदा रहते हैं
परोपकार, दया, करुणा की खुशबू फैलाते हैं
झरना, नदी की कल कल मन को भरमाती है
निस्वार्थ सेवा का संदेश प्रकृति हमको देती है
प्रेम की खुशबू से औरों का जीवन महकाती है
गुणों की खुशबू हवा में , सुन्दर समाज बनाती है
प्यार के बोलों से दिल में, प्रेम की लौ जलती है
जीवों के सेवा भाव से मानवता की खुशबू बिखरती है
निंदा के कीचड़ से निकलो ये पैगाम सुनाती है
अन्याय की दलदल में धंसना ना हमें सुहाता है
बोलें प्यार की भाषा हरदम, अहंकार का अंत करना है
हवा में महके प्रेम की खुशबू, जीवन को प्रेममय बनाती है
आओ करें बरसात गुणों की, सबके जीवन को महकाए।
