" मित्रता की सीख "
" मित्रता की सीख "
यह कैसी दोस्ती है ?
तुम्हारी भला
ना मैं जान सका
ना तुम जान सके !
ना कभी मैंने तुम्हें
जानने की कोशिश की
ना तुम मुझे
कभी पहचान सके !!
बस तस्वीरें ही
तुम्हारी दिखती हैं
तुम तो किसी और
कामों में व्यस्त रहते हो !
कभी तुमने
किसी की परवाह ना की
सदा तुम अपनी
धुन में मस्त रहते हो !!
कई बार तुम्हें
दस्तक भी दिया
संवाद भी करना चाहा !
पर तुम्हारी
मौनता को देख कर
चुप चाप ही रहना चाहा !!
अपनी उपलब्धियों
के जश्न में
डूब के तुम
खोते चले गये !
ना किसी की
याद आयी कभी
सबको तुम
भूलते चले गये !!
साथी का
सम्मान हृदय से
जब हम
ना कर सकेंगे !
सफलताओं
की सीढ़ी हम
कभी भी ना चढ़ सकेंगे !!